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ए॒भिर्नो॑ऽअ॒र्कैर्भवा॑ नोऽअ॒र्वाङ् स्व॒र्ण ज्योतिः॑। अग्ने॒ विश्वे॑भिः सु॒मना॒ऽअनी॑कैः ॥४६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒भिः। नः॒। अ॒र्कैः। भव॑। नः॒। अ॒र्वाङ्। स्वः॑। न। ज्योतिः॑। अग्ने॑। विश्वेभिः। सु॒मना॒ इति॑ सु॒ऽमनाः॑। अनी॑कैः ॥४६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:15» मन्त्र:46


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्याप्रकाश से युक्त पुरुष ! आप (नः) हमारे लिये (विश्वेभिः) सब (अनीकैः) सेनाओं के सहित राजा के तुल्य (सुमनाः) मन से सुखदाता (भव) हूजिये (एभिः) इन पूर्वोक्त (अर्कैः) पूजा के योग्य विद्वानों के सहित (नः) हमारे लिये (ज्योतिः) ज्ञान के प्रकाशक (अर्वाङ्) नीचों को उत्तम करने को जाननेवाले (स्वः) सुख के (न) समान हूजिये ॥४६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे राजा अच्छी शिक्षा और बल से युक्त सेनाओं से शत्रुओं को जीत के सुखी होता है, वैसे ही बुद्धि आदि गुणों से अविद्या से हुए क्लेशों को जीत के मनुष्य लोग सुखी होवें ॥४६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(एभिः) पूर्वोक्तैः (नः) अस्मभ्यम् (अर्कैः) पूज्यैर्विद्वद्भिः (भव) द्व्यचोऽतस्तिङः [अ०६.३.१३५] इति दीर्घः (नः) अस्मभ्यम् (अर्वाङ्) योऽर्वाचीनाननुत्कृष्टानुत्कृष्टान् कर्त्तुमञ्चति जानाति सः (स्वः) सुखम् (न) इव (ज्योतिः) प्रकाशकः (अग्ने) विद्याप्रकाशाढ्य (विश्वेभिः) समग्रैः (सुमनाः) सुखकारिमनाः (अनीकैः) सैन्यैरिव ॥४६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! त्वं नोऽस्मभ्यं विश्वेभिरनीकै राजेव सुमना भव। एभिरर्कैर्नोऽस्मभ्यं ज्योतिरर्वाङ् स्वर्न भव ॥४६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा राजा सुशिक्षितैर्बलाढ्यैः सैन्यैः शत्रून् जित्वा सुखी भवति, तथैव प्रज्ञादिभिर्गुणैरविद्याक्लेशान् जित्वा मनुष्याः सुखिनः सन्तु ॥४६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसा राजा उत्तम शिक्षण घेऊन प्रशिक्षित व बलवान सैन्याद्वारे शत्रूंना जिंकतो आणि सुखी बनतो, तसेच अविद्यायुक्त बुद्धी इत्यादींनी झालेले क्लेश दूर करून माणसांनी सुखी व्हावे.